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ये तो डिलीट हो लिए..
"मस्तराम" नहीं रहे
वहां बदलाव की लय सुनी जा सकती है
क्या ब्लॉगवाणी भी चला नारद की राह
आज बस इतना ही
मोहल्ले और भडास की असली औकात या यूं कहें कि "ताकत"
क्या अविनाश और यशवंत में सवालों का सामना करने की हिम्मत है?
ये लडाई सडक पर भी आएगी क्या?