दक्षिण एशिया का स्वास्थ्य : संक्रामक रोगों का आसान शिकार

सचिन श्रीवास्तव
दक्षिण एशियाई देशों के स्वास्थ्य के हालात पर आई 12वीं वार्षिक रिपोर्ट चौंकाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत दक्षिण एशियाई देश जीका और इबोला जैसे संक्रामक रोगों के आसान शिकार हैं। इसकी वजह है इन देशों का खस्ता हाल स्वास्थ्य सुरक्षा नेटवर्क। चूंकि यह देश पहले ही एचआईवी और मलेरिया जैसे अन्य रोगों से जूझ रहे हैं। साथ ही गैर-संक्रामक रोगों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। यह रिपोर्ट ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है।

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तिहाई संक्रामक बीमारियां इंसानों में जानवरों से आई हैं

डेंगू
1960
के दशक में डेंगू के छुटपुट मामले देखे गए दक्षिण एशिया में
1990 के बाद भारत और श्रीलंका में यह महामारी के रूप में आया सामने
90 प्रतिशत 40 साल के आसपास वाली उम्र के वयस्कों में देखा गया डेंगू वायरस
52.1 करोड़ डॉलर (करीब 34 अरब रुपए) की रकम हर साल खर्च करनी पड़ती है देश में डेंगू के इलाज पर
39 करोड़ लोग हर साल संक्रमित होते हैं डेंगू से विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ के
मुताबिक।

चिकनगुनिया
1952-53
में तंजानिया में पहली बार पहचाना गया चिकनगुनिया वायरस
1971 में महाराष्ट्र के बारसी में असर दिखाने के बाद तीन दशक तक छुपा रहा भारत में यह वायरस
2006 में इसने 13 राज्यों के 13 लाख से ज्यादा लोगों को किया प्रभावित
39 करोड़ रुपए की उत्पादकता के प्रभावित होने का आकलन लगाया गया तब
60 से ज्यादा देशों में लोगों को प्रभावित कर रहा है चिकनगुनिया

नए इलाकों में भी फैल रहे
2016 के दौरान चिकनगुनिया एक बार फिर भारत के कई इलाकों में फैला। यह उसी मच्छर से फैलता है जिससे डेंगू फैलता है। इसी बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीका का हुआ। यह कई नए इलाकों में उभरे हैं, तो कुछ इलाकों में यह तीनों रोग लौटकर आए हैं। डेंगू और चिकनगुनिया लंबे और निश्चित अंतराल के बाद अपने प्रभावी क्षेत्रों में लौटते हैं। डेंगू के मामले भारत के साथ पूरे एशिया में अब आम हो गए हैं।

जीका: चिकनगुनिया की राह पर
हेल्थ जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक जीका वायरस, चिकनगुनिया की ही राह पर है। हालांकि भारत में अब तक इसके मामले की पुष्टि नहीं हुई है। कुछ समय पहले तक जीका के मामले छिटपुट थे, लेकिन अब यह दुनिया भर में फैल गया है। दक्षिण एशिया को इससे सबसे ज्यादा खतरा बताया जा रहा है।

लौट कर आते हैं संक्रामक रोग
संक्रामक रोगों के एक तिहाई मामले वेक्टर जनित होते हैं, जो मच्छर आदि से फैलते हैं। साथ ही यह वायरल या बैक्टीरियल भी हो सकते हैं। कई मामलों में प्रतिरोधी दवाओं की प्रतिक्रिया से भी ये बीमारियां दोबारा आ रही हैं।

हाल ही में उभरी कुछ बीमारियां
इलाका        बीमारी

पश्चिमी अफ्रीका     इबोला
मध्य-पूर्व         मर्स-सीओवी
चीन         एच7एन9 इनफ्लूएंजा
दक्षिण एशिया     नीपा
गुजरात         वेस्ट नील वायरस
कांगो     हेमरेजिक फीवर

बीते 07 दशक में बढ़े संक्रामक रोगों के हमले
अमूमन माना जाता है कि दुनिया का स्वास्थ्य सुरक्षा तंत्र मजबूत हो रहा है, लेकिन असल में आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, 1940 के बाद से संक्रामक रोगों से प्रभावित होने वालों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। हालांकि इसकी एक वजह ऐसे मामलों के सामने आने में बढ़ोतरी मानी जाती है। इसके बावजूद दुनिया कई नई बीमारियों की चपेट में आई है, जिनमें से कई संक्रामक हैं।

नए रोगों का खतरा भी
मौजूदा समय में कई वायरस ऐसे हैं, जिन्हें खत्म करने के लिए प्रयास जारी हैं, लेकिन यह खतरा बढ़ सकता है। आशंका है कि आने वाले समय में दुनिया में कई बीमारियां सामने आएंगी। दिक्कत यह होगी कि न तो हमारे शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इनसे लड़ पाएगा और न ही इनके खिलाफ हमारे पास कारगर दवाएं होंगी।

क्यों बढ़ रहे हैं संक्रामक रोग
अध्ययन के मुताबिक संक्रामक रोगों के बढऩे की बड़ी वजह मानवशास्त्रीय और जनसांख्यिकीय बदलाव हैं। मच्छर जनित बीमारियों सहित वेक्टर रोगों की बढ़ोतरी के पीछे 1990 के दशक में जलवायु में आया बदलाव भी है। तेज गर्मी और असामान्य बारिश ने इन बीमारियों को बढऩे का मौका दिया है।

कम नहीं है गैर संक्रामक रोगों का खतरा

गैर संक्रामक रोगों से दुनियाभर में 60.3 प्रतिशत मौतें होती हैं। हालांकि भारत में यह आंकड़ा कुछ कम है। देश में 50.5 प्रतिशत मौतें गैर संक्रामक रोगों से होती हैं। चार मुख्य गैर संक्रामक रोगों मधुमेह, सांस संबंधी, कैंसर और हृदय रोग से 80 प्रतिशत मौतें होती हैं।
20 प्रतिशत से ज्यादा वैश्विक आबादी कम से कम एक गैर संक्रामक रोग से पीडि़त है
10 प्रतिशत आबादी को एक से ज्यादा गैर संक्रामक रोग