भारतीय विज्ञान को मरम्मत की दरकार

सचिन श्रीवास्तव
विज्ञान से संबंधित देश की सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाइयों के शीर्ष अधिकारी-वैज्ञानिकों ने हाल ही में संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री से एक गुहार लगाई है। यह गुहार देश में विज्ञान क्षेत्र की आमूलचूल मरम्मत की है। इन शीर्ष अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में एक ऐसी ताकतवर संस्था के गठन का प्रस्ताव दिया है, जो शोध की जरूरत और जमीनी हालात पर नजर रखे। साथ ही यह संस्था सीधे प्रधानमंत्री
को रिपोर्ट करे।
स्पार्क का है प्रस्ताव

वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को एक नई इकाई के गठन का प्रस्ताव दिया है। इसे शोध आवेदनों और ज्ञान में निरंतर प्रगति के लिए स्पार्क (सस्टनेबल प्रोग्रेस थ्रू एप्लीकेशन ऑफ रिसर्च एंड नॉलेज) का नाम दिया गया है।
खासियत: तेज, ताकतवर और प्रतिभाओं से भरपूर
प्रस्ताव देने वाले संस्थान: परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, विज्ञान एवं तकनीक विभाग, भूगर्भ विज्ञान विभाग और बायोटेक्नालोजी विभाग।
कब: जनवरी में
उद्देश्य
2030 तक दुनिया की तीन बड़ी विज्ञान-तकनीक की ताकतों में शामिल होने की बनाई गई है कार्ययोजना
100 शीर्ष वैज्ञानिकों में भारतीय वैज्ञानिकों का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत करने का है लक्ष्य

दशकों से उपेक्षा का शिकार
देश की विज्ञान इकाइयों की ओर से प्रधानमंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय विज्ञान की जो प्रगति दिखाई दे रही है, वह उसकी असल क्षमता की छाया मात्र है। यानी देश की वैज्ञानिक क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल ही नहीं किया गया है। इसके लिए दशकों से की गई भूलों और चूकों को जिम्मेदार ठहराया गया है।

औसत वैज्ञानिकों का चयन
रिपोर्ट में कहा गया है कि दशकों की उपेक्षा के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना आत्मविश्वास खो दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में वे अपने ही बीच से अब औसत दर्जे के लोगों का चयन कर रहे हैं, जबकि शीर्ष प्रतिभाएं विदेशों की ओर जा रही हैं।

विदेशों में साख, देश में हालात खराब
वैज्ञानिकों और प्रशासकों का कहना है कि शीर्ष प्रतिभाओं के विदेशों में जाने से दुनिया में भारतीय वैज्ञानिकों की अच्छी छवि बनी है, लेकिन इससे देश के विज्ञान समुदाय का हाल खराब हो गया है। जो लोग अच्छे अवसरों के बावजूद देश की सेवा के लिए रुके रहे, उन्हें काम के बेहतर हालात नहीं मिले।

दो बड़ी चुनौतियां
1- पैसे की कमी

देश के विज्ञान समुदाय के सामने सबसे बड़ा संकट पैसे की कमी का है। पैसे के अभाव में कई परियोजनाएं शुरू ही नहीं हो पा रही हैं, जो शुरू होती हैं, वे लंबे वक्त तक फंड की कमी से जूझती रहती हैं और जब अपने मुकाम पर पहुंचती हैं, तब तक उनका प्रभाव कम हो जाता है।
2- स्वायत्ता नहीं
जरूरी निर्णय लेने में सरकारी दखल और अन्य दिक्कतों से भी विज्ञान क्षेत्र परेशान है। सामान्य कर्मचारियों की नियुक्ति तक के लिए बजट और अन्य जरूरी प्रक्रियाओं में खासा समय निकल जाता है।

दो बड़ी जरूरत
आसान हो काम:
रिपोर्ट में विज्ञान क्षेत्र के कार्यों को आसान बनाने और नौकरशाही दखल को कम करने की वकालत की गई है। इससे शोधों आदि की प्रक्रिया में तेजी आ सके और वैज्ञानिक खुद अपने निर्णय ले सकें।
प्रतिभाओं की वापसी: विदेशों से भारतीय और विदेशी वैज्ञानिकों की आमद बढ़ाने के लिए फैलोशिप देने की जरूरत बताई गई है।

तीन प्राथमिकताएं
कृषि:
देश के कृषि क्षेत्र में शोध को भारतीय जरूरतों के आधार पर बढ़ावा देने की जरूरत। हर क्षेत्र की जरूरतों के मुताबिक उपकरण और बीज तैयार करने की नीति बने।
मौसम: आपदाओं और उत्पादन का सीधा संबंध मौसम से है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को ज्यादा से ज्यादा मौके दिए जाएं।
स्वास्थ्य: देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों की रोकथाम और आसान उपचार प्रावधियों को विकसित करने की जरूरत।

सुधार जारी, लेकिन रफ्तार धीमी
फिलहाल विज्ञान एवं तकनीक विभाग कुछ पहलों के माध्यम से हालात सुधारने की कोशिश में है, लेकिन उन्हें नाकाफी बताया जा रहा है।

2 हजार करोड़ महिला वैज्ञानिकों पर खर्च: विज्ञान एवं तकनीक विभाग की ओर से लड़कियों की वैज्ञानिक शिक्षा और महिलाओं के प्रशिक्षण पर 2 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई गई है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत शोध में दिलचस्पी रखने वाली 1 लाख स्कूली छात्राओं को इससे जोड़ा गया है।

विदेशी शोध को बढ़ावा: देश में विदेशी वैज्ञानिकों को 12 महीने के लिए प्रतिमाह 2000 अमरीकी डॉलर (करीब 1.30 लाख रुपए) की स्कॉलरशिप राशि शोध के लिए देने की योजना शुरू की गई है। 2016 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक 350 ऐसी स्कॉलरशिप देने की योजना है।

आदिवासी क्षेत्र की प्रतिभाओं का चयन: देश के सुदूर आदिवासी क्षेत्रों से देशज ज्ञान रखने वाली आदिवासी प्रतिभाओं को सामने लाने और उन्हें शोध के लिए प्रोत्साहित करने की योजना चलाई जा रही है।

इंस्पायर पुरस्कार: देश के पांच लाख स्कूली छात्रों की वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए 13.86 लाख इंस्पायर पुरस्कार दिए गए। इनमें 47 प्रतिशत लड़कियां और 26 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों ने पुरस्कार जीते।